हे स्वप्नदर्शी,
तुम कहां चल दिये,
उड़ कर,
बिना कुछ कहे.
कहीं ये दिन का अंत तो नहीं,
या तुम्हारा प्रयाण है,
नई सुबह के आगमन से पहले,
विश्राम का समय.
तुमने, आकार दिया,
स्वप्न को जो हम सबने देखा,
रंग दिया, तस्वीर को,
जो कहीं हमारे दिल में छुपी थी,
पंख दिये, आकाश दिया,
स्वप्नदर्शी,
तुम हमारे साथ हो,
तुम्हारी आंखों से ही देखेंगे,
हम रंगों भरी कल की सुबह,
तुम्हें नमन.