बुधवार, अगस्त 19, 2009

सूरज - बाल कविता - २

मुझसे धरती, मुझसे चंदा,
मुझसे सारी सृष्टि,
मुझसे जल, मुझसे नभ,
सब पर मेरी दृष्टि,
मुझसे सारा जीवन है,
मुझसे सारी खुशियां,
मैं सूरज हूं, मेरे पीछे,
दौड़ रही हैं सदियां

सूरज - बाल कविता


सुबह रोज मैं आता हूं,
तुम सबको दौड़ाता हूं,
शाम को फिर मैं छुप जाऊं,
चंदा को आवाज लगाऊं,
मेरे प्यारे चलते रहना,
सपने सुंदर वुनते रहना.

शनिवार, जुलाई 25, 2009

सुबह

हर सुबह है लाती,
खुशियों की एक पाती,
प्रकृति जगाती मन को,
एक नई खोज पर बुलाती.

आओ नमन करें ईश का,
शीश झुकाकर आभार करें,
तुमने दी ये अनोखी धरा,
तुमने दिया ये सुंदर जीवन.

मंगलवार, अप्रैल 21, 2009

मंज़िल

मंजिल उन्हीं को मिलती है,
जिनके सपनो में जान होती है
पंखों से कुछ नहीं होता,
हौसलों से उड़ान होती है

सोमवार, अप्रैल 20, 2009

दर्द

दर्द कोई हमदम तो नहीं,
कि गुज़रते वक्त पे छोड़ दूं,
वो तो मेरा साया है,
वो कब्र तक साथ जायेगा.