हर ओर टूटी इमारतें, खिरती दीवारें और दरकते मचान,
फिर भी मेरा यह शहर अपनी बुलंदियों पर इतराता फिर रहा है ।
महलों को छोड़ बेगमें सड़क पर आ गई हैं,
हरम अब बांदियों और लौंडियों के सहारे ज़िंदा हैं ।
रूपमती के झरोखे से अब नर्मदा नजर नहीं आती,
हरेक की नजर में कुहासा छा गया है ।
मिट गये हैं जामा मस्ज़िद से अजान देने वाले,
अशर्फी महल की आयतें अब दुर्गति पढ़ रही हैं ।
सब कुछ इतिहास, अब वर्तमान खत्म हो चला है,
मेरा ये शहर अब मांडू हो चला है ।
4 टिप्पणियां:
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आनन्द जी, कहाँ हैं आज-कल आप? फ़लसफे में जिस 'सृजन' वाले काम का उल्लेख है, वह आज-कल ठप कैसे चल रहा है?
wah, saab kya baat hai. good use of historic hindi word. manoj--
very nice. brings back many memories..
mera shehar ab mandu ho chala hai!
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