बुधवार, जनवरी 31, 2007

मांडू

हर ओर टूटी इमारतें, खिरती दीवारें और दरकते मचान,
फिर भी मेरा यह शहर अपनी बुलंदियों पर इतराता फिर रहा है ।

महलों को छोड़ बेगमें सड़क पर आ गई हैं,
हरम अब बांदियों और लौंडियों के सहारे ज़िंदा हैं ।

रूपमती के झरोखे से अब नर्मदा नजर नहीं आती,
हरेक की नजर में कुहासा छा गया है ।

मिट गये हैं जामा मस्ज़िद से अजान देने वाले,
अशर्फी महल की आयतें अब दुर्गति पढ़ रही हैं ।

सब कुछ इतिहास, अब वर्तमान खत्म हो चला है,
मेरा ये शहर अब मांडू हो चला है ।

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

विकिपीडिया हिन्दी में योगदान करना न भूलें
hi.wikipedia.org

Pratik Pandey ने कहा…

आनन्‍द जी, कहाँ हैं आज-कल आप? फ़लसफे में जिस 'सृजन' वाले काम का उल्‍लेख है, वह आज-कल ठप कैसे चल रहा है?

बेनामी ने कहा…

wah, saab kya baat hai. good use of historic hindi word. manoj--

sandeepchauhan ने कहा…

very nice. brings back many memories..
mera shehar ab mandu ho chala hai!